छत्तीसगढ़ मे समाचार पत्रों की कमी नही है , बल्कि हाल ही के दो तीन वर्षो मे कई राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों ने भी यहाँ की राजधानी रायपुर से प्रकाशन प्रारम्भ किया है ,किंतु फिर भी कुछ कमिया खटकती है ,विशेष रूप से समाचारों की विश्वनीयता के बारे मे ,निष्पक्षता आदि के बारे मे जनसामान्य की विचारो से समाचार पत्रों के विचार मेल नही करते है । आख़िर क्यो ?
यदि इसका निष्पक्ष विचार किया जाए तो कुछ बाते ऐसी है जिनसे बड़े से बड़े समाचार पत्र अछूते नही रहे । हम जानते है की अधिकांश पत्र पत्रिकाए विज्ञापन पर निर्भर होती है ,या फिर प्रसार संख्या जो कि अनेको पत्रों के कारण बहुत कम कम रह जाती है । और फिर यह भी ध्यान देने योग्य है कि विज्ञापन भी सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर है या राजनीतिक विज्ञापन पर ।
इन सबसे हटकर विचार किया जाए कि अन्य क्या कारण है तो यह भी ध्यान देने योग्य है कि यदि इन पत्रों के संपादक यदि निष्पक्ष और सिध्दांत वादी भी है तो भी इनके संवाद दाता उतने कुशल प्रतिबध्द नही है ,जितने होने चाहिए ,उनका समाचार संकलन का तरीका भी बहुत अच्छा नही है ,अधिकांश पत्रों के संवाददाता जिला मुख्यालयों मे कलेक्टर या अन्य बड़े अधिकारियो के कार्यालयों से ,राजनीतिक दलो के नेताओ से समाचार संकलित करते रहते है ,कुछ उनकी वित्तीय समस्याये भी होती है जिनके कारण वे चाहकर भी अधिक मेहनत नही कर पाते ।
अब इसका निदान तो हम नही कर सकते पर यदि आम जनता की भागीदारी से समाचारों का प्रकाशन हो जिसमे लोगो को अपनी समस्याओ ,उनके हल आदि के सम्बन्ध मे लिखने का अवसर मिले तो उसका बेहतर प्रतिफल मिल सकता है और नेट के हिन्दी ब्लाग से एक उम्मीद की किरने दिखायी देती है .जिसमे हम सब मिलकर कुछ कर सकते है ।
1 टिप्पणी:
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